पल्लवन

पल्लवन का शब्दिक अर्थ है-विस्तार, फैलावा हिन्दी में पल्लवन अंग्रेजी के expansion का पर्याय है। पल्लवन एक ऐसी लघु रचना को कहा जाता है जिसमें किसी सूत्र काव्य पंक्ति, कहावत अथवा लोकोक्ति के मुख्य भाव को विस्तार रूप दिया जाता हैं। कि मूल भाव संक्षिप्त होते हुए भी पूरी परह स्पष्ट हो जाए। उसे स्पष्ट करने के लिए उदाहारणों का आश्रय लिया जाता है और उसके विपक्ष में तर्को को देकर मूल कथ्य को विस्तार दिया जाता है। अतः ‘‘ पल्लवन वाक्यों के उस समूह को कहते हैं, जिसमें किसी एक विषय के मुख्य विचार या सिद्धांत को तर्क एंव उदाहरण द्वारा विस्तृत रूप दिया जाता है और तर्को का प्रयोग करते हुए कथ्य को स्पष्ट किया जाता है।      

भाषा भावों और विचारों के आदान-प्रदान का मुख्य साधन है। अपने विचारों को लिखित और मौखिक रूप में अपनी भाषा में प्रस्तुत करता है। जिससे उसकी मौलिकता की जानकारी प्राप्त होती है। इस प्रकार अपने भावों और विचारों को मौलिक रूप में प्रस्तुत करना पल्लवन का अंग है। पल्लवन सामान्यतः गद्य भाषा में ही किया जाता हैं। इसके लिए लेखे को अपने भावों का मूर्त रूप देने के लिए नए-नए प्रयोगों, नए-नए विशेषणों, कल्पनाओं, पदबंधों, मुहावरों लोकोक्तियों, शब्दशक्तियों, अंलकारों एंव सुक्तियों आदि का सहारा लेना पड़ता है। पल्लवन कुछ इस प्रकार की गद्य विद्या है जिसमें कुछ सूत्र दे दिए जाते हैं। जैसे विपत्ति मित्रों की कसौटी है, जाको राखे साइयाँ मार सके न कोई, काल करे सो आज कर, वर्षा की रात, मन के हारे हार, मन के जीते जीत आदि। ये सूत्र मुहावरे लोकोक्ति, काव्य पंक्ति या सूक्ति कथन भी हो सकते है। इन सूत्रों अथवा भावों को अपने शब्दों में किसी अनुच्छेद के रूप में विकसित करने की क्रिया को पल्लवन कहा जाता हैं।

पल्लवन और व्याख्या में पर्याप्त अंतर होता है। पल्लवन में सूत्र वाक्य, विचार या भाव को मात्र विस्तार दिया जाता है जबकि व्याख्या में विस्तृत विवेचन के साथ-साथ आलोचना, टिका टिप्पणी भी की जाती है। पल्लवन में दिए गए विचार सूत्र का विस्तार सामान्यतः एक अनुच्छेद में किया जाता है। आवश्यकता पडने पर अन्य अनुच्छेदों में बाँटा भी जा सकता है।

अतः पल्लवन में लेखक या कवि अपने विचार कल्पना से सूत्र वाक्य को पोषित करता हैं। मौलिकता जल का कार्य करती है जिससे पल्लवन रूपी पौधा विकसित होता है। जिसके लिए निंरतर अभ्यास और अध्ययन की आवश्यकता हैं।

 

प्रचलित भ्रांतियाँ

पल्लवन से संबधित प्रचलित भ्रांति यह है कि पल्लवन को विद्यार्थी कई बार अनुच्छेद लेखन, निंबध लेखन, व्याख्या आदि मान लेता है। वह अन्य रचना रूपों में भेद नहीं कर पाता। इन रचना विद्याओं में पर्याप्त अंतर हैं जिन्हे समझना आवश्यक हैं।

पल्लवन और अनुच्छेद लेखन में भाषा प्रयोग की दृष्टि से भेद प्रतीत होता है, क्योंकि पल्लवन प्रायः प्रसिद्ध सूत्र, मुहावरे, लोकोक्ति, काव्य पंकित आदि का किया जाता है। जबकि अनुच्छेद किसी भी रचना का एक भाग होता है, स्थूल दृष्टि से दोनो समान लगते है लेकिन सूक्ष्मतः इनमें पर्याप्त भेद है।

पल्लवन और व्याख्या में भी पर्याप्त अंतर है। व्याख्या प्रायः गद्यांश या पद्यांश की होती है। लेकिन पल्लवन पूर्णतः लेखक के विचारो पर निर्भर होता है

पल्लवन और संक्षेपण में तो पर्याप्त अंतर है ही ये दोनो एक दूसरे के विरोधी या (वचचवेपजम) होते है। एक आधारभूमि विस्तार है दूसरे की सीमित संक्षिप्त।

पल्लवन को निंबध भी नहीं कहा जा सकता, क्योकि सर्वप्रथम तो दोनो के आकार में भिन्नता है पल्लवन की आकार सीमा दस से बीस पंक्तियों या फिर 250 की शब्द सीमा होती हैं। जबकि निबंध दीर्घ रूप में विचारों का प्रकट करता है।

 

वैल्यू एडिशन:  क्या आप जानते हैं

पल्लवन क्या है-

पल्लवन प्रायः किसी सूत्र, मुहावरे, लोकोक्ति, काव्य पंक्ति आदि का ही किया जाता हैं। किसी विचार को भाव को अपनी बौद्धिक क्षमता और ज्ञान से पल्लवित किया जाना ही पल्लवन हैं।

Comments

  1. बहुत अच्छा लगा आपने मेरे मन की जिज्ञासा को दूर कर दिया
    बहुत बहुत धन्यवाद सर

    ReplyDelete
  2. वाह,पल्लवन शब्द के शाब्दिक अर्थ का आज पता चला।ज्ञानवर्धक आलेख के लिए बधाई और शुभकामनाएं।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

सामाजिक शोध का अर्थ, उद्देश्य एवं चरण

चिंतन एवं विकास