चिंतन एवं विकास
चिन्तन एक मानसिक प्रक्रिया है और ज्ञानात्मक व्यवहार का जटिल रूप है। यह शिक्षण, स्मरण, कल्पना आदि मानसिक क्षमताओं से जुड़ा रहता है। प्राय: सभी प्राणियों में सोचने समझने एवं चिन्तन करनें की क्षमता होती है परन्तु मनुष्य बुद्धिबल एवं चिन्तनसे अन्य प्राणियों से विकसित प्राणी है। मनुष्य की प्रगति मुख्यत: उसके चिन्तनपर आधारित है और वह इसके उपयोग से वह अपनी कर्इ प्रकार की समस्याओं को हल करता है। सभी मनुष्यों में सोचने एवं समझने की क्षमता समान नहीं होती। किन्हीं में यह क्षमता निम्न स्तर पर होती है तो कर्इ मनुष्यों में यह मध्यम से उच्च स्तरीय होती है। कुछ मनुष्यों में यह क्षमता उच्चतम स्तर तक भी होती है। विचारों के आदान - प्रदान में व्यक्ति चिन्तन का प्रयोग करता है। चिन्तनको इन क्षमताओं से पूर्णतया अलग नहीं किया जा सकता। कर्इ लोगों के अनुसार चिन्तन प्रक्रिया में हमारा मस्तिष्क सक्रिय रहता है तो कर्इ लोगों का यह मानना है कि मस्तिष्क के अतिरिक्त शरीर के अन्य भागों का भी चिन्तनसे संबंध है। अन्य मानसिक प्रक्रियाओं की अपेक्षा चिन्तन अधिक जटिल प्रक्रिया है और यह प्राय: अतीतानुभूतियों पर निर्भर करता है। अर्थात् चिन्तनव्यक्ति के ज्ञानात्मक व्यवहार का जटिल स्वरूप है। चिन्तनशक्ति के कारण ही व्यक्ति विज्ञान, तकनीकी तथा अन्य विधाओ का विकास करता है। यह एक ऐसी बौद्धिक क्षमता है जिसका महत्त्व व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है। शिक्षा जगत् में भी इसका महत्त्व विशेष है।
चिन्तन को हम मानसिक विचार की अवस्था भी कह सकते है अर्थात् व्यक्ति की एक विचारशील अवस्था का नाम चिन्तनहै। विचार का अर्थ है कि विभिन्न दृष्टियों से एक बात को देखने अथवा समझने का प्रयत्न करना। चिन्तनके अंतर्गत हम विचार को जांचते है, समालोचना करते है, उसके प्रति जागरूक होते है, तुलना करते है, प्रश्न-प्रत्तिप्रश्न करते है, विश्लेषण करते है, बार-बार दोहराते है और संबंधित बातों को सामने लाने का प्रयत्न करते है, इत्यादि। अत: चिन्तन एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है और यह हमारे मस्तिष्क में चलती रहती है। चिन्तनमें अनेक आन्तरिक क्षमताओं का उपयोग होता रहता है, जैसे-कल्पना, एकाग्रता, जागरूकता, स्मृति, समझ और अवलोकन आदि। ये सभी आन्तरिक क्षमताएं चिन्तनकी प्रक्रिया में सहभागी एवं सहयोगी बनती है। चिंतनशक्ति की स्पष्टता एवं विकास के लिए पृथकता से विचार करना अपेक्षित है।
अच्छे चिन्तन क्षमतावान व्यक्तियों में यह विशेषता होती है कि वे किसी भी घटना, स्थिति अथवा योजना को समझने एवं उनका विश्लेषण करने में दक्ष होते है। चिंतनशील व्यक्तियों में घटनाओं, स्थितियों एवं योजनाओं का विश्लेषण करने तथा अपने मत अथवा अपनी बात को संपुष्टता से एवं स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने की क्षमता होती है। इनके तर्क सटीक एवं स्पष्ट होते है। वे दूसरों के तर्कों का प्रत्युत्तर सरलतासे दे सकते है। चिंतनशील व्यक्ति सरलता से उत्तेजित भी नहीं होते और हर स्थिति तथा परिस्थिति में धैर्यता से विचार करते है, वे कुछ विशेष सिद्धान्तों में विश्वास करने वाले होते है और उसी के आधार पर घटनाओं का आंकलन करते है तथा परिणामों पर विचार करते है। प्राय: उनके निर्णय व्यक्तिपरक न होकर वस्तुपरक, निष्पक्ष एवं सैद्धान्तिक होते है क्योंकि चिंतक का अपना मूल्य होता है। अच्छे चिंतक यह बताने में भी समर्थ होते है कि अनेक सम्भावित समाधानों में उचित समाधान क्या हो सकता है? परिणामों के प्रति उनका दृष्टिकोण प्राय: संतुलित होता है और वे किसी भी घटना के प्रति समभाव रखते है। वे घटनाओं को लेकर न तो अत्यधिक उत्साहित या उत्तेजना का प्रदर्शन करते है और न ही खिन्नता दिखाते है।
चिन्तन की परिभाषाएं
मनोवैज्ञानिकों ने चिन्तनको अनेक रूपों में परिभाषित किया है।
वुडवर्थ ने चिन्तन को बाधाओं के निवारण का एक साधन माना है उनके अनुसार ‘‘चिन्तन बाधाओं के निवारण का एक साधन है।’’ कॉलिन्ग तथा ड्रेवर के अनुसार ‘‘चिन्तन प्राणी का परिस्थिति के प्रति चेतन समायोजन है।’’ डॉ. एस.एन. शर्मा ने वारेन के द्वारा चिन्तन के संदर्भ में दी गर्इ परिभाषा को अपने शब्दों में इस प्रकार अभिव्यक्त किया है- ‘‘चिन्तनएक विचारात्मक प्रक्रिया है जिसका स्वरूप प्रतिकात्मक है, इसका प्रारंभ व्यक्ति के समक्ष किसी समस्या अथवा क्रिया से होता है, परन्तु समस्या के प्रत्यक्ष प्रभाव से प्रभावित होकर अंतिम रूप से समस्या सुलझाने अथवा उसके निष्कर्ष की ओर ले जाती है। कागन एवं हैवमेन के अनुसार चिन्तनप्रतिमाओं, प्रतिका,ें संप्रत्ययों, नियमों एवं मध्यस्थ इकाइयों का मानसिक परिचालन है। सिलवरमेन के अनुसार चिन्तन एक मानसिक प्रक्रिया है जो हमें उद्दीपकों एवं घटनाओं के प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व द्वारा किसी समस्या का समाधान करने में सहायता करती है। बेरोन ने चिन्तनको संप्रत्ययों, विचारार्थ समस्याओंं तथा प्रतिमाओं का मानसिक परिचालन माना है। आइजनेक एवं उनके साथियों के अनुसार “कार्यात्मक परिभाशा के रूप में चिन्तन काल्पनिक जगत में व्यवस्था स्थापित करना है। यह व्यवस्था स्थापित करना वस्तुओं से सम्बन्धित होता है तथा साथ ही साथ वस्तुआ के जगत की प्रतिकात्मता से भी सम्बन्धित होता है। वस्तुओं में सम्बन्धों की व्यवस्था तथा वस्तुओं में प्रतिकात्मक सम्बन्धों की व्यवस्था भी चिन्तन है।
चिन्तन की विशेषताए
चिन्तन एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है जिसमें अनेक सरल मानसिक प्रक्रियाएँ निहित रहती है।चिन्तन का आरम्भ किसी समस्या, कठिनाई, असन्तोष अथवा इच्छा के उत्पन्न होने पर होता है। चिन्तन के फलस्वरूप व्यक्ति की समस्या का समाधन होता है। चिन्तन स्थूल से सूक्ष्म की ओर होता है। चिन्तन उद्देश्यपूर्ण होता है, इसीलिए इसका अभिप्रेरणा से प्रभावित होना स्वाभाविक है। चिन्तन व्यक्ति को क्रियाशील बनाता है। चिन्तन में पूर्वानुभवों का उपयोग निहित रहता है। चिन्तन वातावरण के साथ व्यक्ति की अन्तक्रिया का एक पक्ष है। चिन्तन व्यक्ति के व्यवहार के अन्य पक्षों से भी सम्बन्धित है।
चिन्तन प्रक्रिया
चिन्तन प्रक्रिया को पाँच सोपनो में विश्लेषित करके समक्षा जा सकता है।
किसी लक्ष्य की और उन्मुख होना- व्यक्ति के सम्मुख जब कोई समस्या उत्पन्न होती है तब वह उस समस्या का समाधान करने के लिए चिन्तन करता है। चिन्तन लक्ष्य समस्या को दूर करना होता है।लक्ष्य प्रात्ति के लिए प्रय्रयास करना- चिन्तन में व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहता है। उसका प्रयास होता है कि शीघ्रातिशीध्र समस्या का समाधान हो जाये। पूर्व अनुभवों का स्मरण करना- चिन्तन में व्यक्ति अपने पुराने अनुभवों को पुन: स्मरण करता है जिससे उनके आधार पर वह वर्तमान समस्या का समाधान करने में समर्थ हो सके।पूर्व अनुभवों को वर्तमान समस्या से सयेंेिजत करना- जब व्यक्ति अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर वर्तमान समस्या का समाधान खोजने का प्रयास करता है तब उसके सम्मुख समस्या के अनेक संभावित समाधान उपस्थित होने लगते है। समाधान की सार्थकता देखना- यह चिन्तनकर्ता के मस्तिष्क के सम्बन्ध में कर्इ समाधान प्रस्तुत हो जाते है वह उनमें से किसी एक समाध ाान का चयन करता है तथा उसे व्यवहारिक रूप देकर समस्या के समाध् ाान में उसकी सार्थकता प्रमाणित करता है।चिन्तन प्रक्रिया के बारे में मनोवैज्ञानिक हेम्फ्रे ने भी कुछ तथ्य प्रस्तुत किये है-
व्यक्ति समस्या के समाधान के लिए चिन्तनकरता है और इस क्रिया में वह पूर्व अनुभवों का प्रयोग करता है।व्यक्ति की समस्या उसके उद्देश्य तक पहुंचने में बाधा उत्पé करती है अत: समस्या के हल के लिए चिन्तनकी आवश्यकता पड़ती है। इसी परिस्थिति में चिन्तन क्रियाशील होता है। चिन्तन उद्देश्यपूर्ण होता है और इसमें भाषा अति आवश्यक होती है। समस्या के समाधान में जब चिन्तनप्रक्रिया प्रारंभ होती है तो उसमें प्रतिमाऐं, आन्तरिक भाषा तथा मांसपेशिय क्रियाएं भी होती है।
चिन्तन प्रक्रिया के तत्त्व
चिन्तनके लिए समस्या का उपस्थित होना आवश्यक है। समस्या के हल के लिए एक दिशा निर्धारित करना। उद्देश्यपूर्ण दिशा की ओर अग्रसर होना। प्रयास एवं त्रुटि (Trial and error) विधि का प्रयोग करना। व्यक्ति का क्रियाशील होना। आन्तरिक भाषा का उपस्थित होना।
चिन्तन के प्रकार-
1. प्रत्यक्षात्मक चिन्तन -
यह सर्वाधिक निम्न स्तर का चिन्तन है जो पा्र य: छोटे बालकों तथा पशुओं में पाया जाता है। इस प्रकार चिन्तन का मुख्य आधार संवेदना तथा प्रत्यक्षीकरण से प्राप्त प्रत्यक्ष ज्ञान होता है। इस प्रकार के चिन्तन में भाषा अथवा संकेतों का प्रयोग नही किया जाता है। यह चिन्तन किसी प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित घटना पर आधारित होता है। उदाहरणार्थ एक बार अग्नि से जल जाने वाला बालक पुन: अग्नि को देखता है और सोच लेता है कि अग्नि के पास जाने पर मैं जल जाउँगा।
2. कल्पनात्मक चिन्तन-
कल्पनात्मक चिन्तन का आधार मानसिक प्रतिमाएं होती है। इस प्रकार के चिन्तन में कोर्इ वस्तु अथवा परिस्थिति प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित नही होती है अर्थात इसमें प्रत्यक्षीकरण का अभाव होता है। इसमें व्यक्ति उद्दीपक के सम्मुख न होने पर भी स्मृति के आधार पर भविष्य के विषय में सोचता है।
3. प्रत्यात्मक चिन्तन -
यह चिन्तन का सर्वोच्च रूप है। इस प्रकार के चिन्तन में पूर्व निर्मित प्रत्ययों के आधार पर प्राणी चिन्तन करता है। इस प्रकार के चिन्तन में भाषा तथा संकेतों का प्रयोग किया जाता है। प्रत्यात्मक चिन्तन एक अत्यंत जटिल मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति पुराने अनुभवों के आधार पर अपनी वर्तमान समस्या का सूक्ष्मतम विश्लेषण करता है तथा उसके सम्बन्ध में किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है।
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